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सरकार की शिक्षा व्यवस्था अपनी बदहाली का रोना रो रहा है और उसके दुष्प्रभाव से गरीब बच्चों का भविष्य चौपट होता है । नवम्बर माह बितने वाली है ,अर्द्ध वार्षिक परीक्षा समपन्न हो गई और अब वार्षिक परीक्षा की तैयारी शुरू हो रही हैं, लेकिन गनीमत है सरकार के शिक्षा व्यवस्था की बजार से वंचित छात्रों को मुफ्त किताब अभी तक नहीं प्राप्त हुआ है।
अब सवाल उठता है कि बच्चों के पास जब किताब ही नहीं तो पढाई और परीक्षा की क्या उपयोगिता रह जाती है ? सरकारी विद्यालयों की बुनियादी सुबिधा पर नजर डालने की आवश्यकता महसूस हो रही हैं । ये आवश्यकता इसलिये भी है कि “गांधी जयंती के अवसर पर सभी विद्यालयों के शिक्षक और छात्र-छात्राओं ने स्वक्षता और दहेजमुक्त विवाह का संकल्प लिया है”। हमे इस बात को कहने मेंं कोई संकोच नहीं हो रहा हैं कि सरकार के तोते फोटो संकल्प को अमलीजामा पहनाने में लगे हैं। हमने जन्दाहा के कई विद्यालयों का इमानदार भौतिक सत्यापन किया । कई विद्यालय शौचालय विहीन है या विहीनता के कगार पर है और यदि है भी तो किबाड़ लगी शौचालय की सुंदरता ताला बढा रही हैं। छात्र खुले में शौच के लिये जाने को विवस है। आखिर गांधी जयंती के अवसर पर स्वक्षता के संकल्प लेने का औचित्य क्या है ?
सरकारी शिक्षा व्यवस्था सरकार,पदाधिकारी,कर्मचारियों के साथ-साथ शिक्षकों के आत्मीयहीनता का शिकार होकर गरीबों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
क्या सरकार इमानदारी से बताने में सक्षम है कि कितने सरकार और सरकारी कर्मीयों के बच्चे सरकारी विद्यालय में पढते है ? क्यों इसके हालत से अवगत होकर अपने बच्चों के भविष्य खङाब नहीं करना चाहते हैं और यदि यही सत्य है तो इन्हें बच्चे के भविष्य से खिलवाड़ करने का अधिकार कहाँ से प्राप्त हो गया है ?
सरकार के पदाधिकारी शिक्षकों के दोहन करने से अधिक ताल्लुकाती नहीं है। शिक्षकों का ऐसा कोई काम.नहीं जो बिना पैसे दिये हो। लेन-देन के सूत्रधार भी शिक्षक ही होते है। परिणामतः नामांकन से लेकर परीक्षा फ्रॉम भरने और प्रमाण पत्र देने मेंं विद्यालय प्रधान छात्रों का दोहन करते है। हाल ही के दिनों में छात्रों द्वारा हंगामा भी इस मामले में अरनिया मध्य विद्यालय बालक में हुआ था जो कि अखबारों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित भी हुआ था। लेकिन पदाधिकारी द्वारा न कोई करवाई की गई ना ही कोई जांच। विद्यालय परिवेश राजनीतिक होते हुए कलहस्थली बनी हुई है। आखिर इन्हीं के सहारे तो पदाधिकारियों का जेब जो गर्म होता। इसके प्रमुख नायकों में प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी और उनका कार्यालय कर्मी अहम भूमिका निभाती है। बिहार का ये एक ऐसा विभाग है जहाँ रुपये के वेदी पर शिकायत दफन होकर गरीब बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाता है।
आखिर क्यों नहीं सरकार हाँथ खङा कर कह रहीं हैं कि अपने बच्चों की फिक्र आप स्यंव करो ? आखिर क्यों बच्चो के भविष्य के नाम पर खरबों रुपये पानी में बहाई जा रही हैं ? क्यों नहीं छात्रों को समय पर किताब और शिक्षास्थली को राजनीति मुक्त कराया जा रहा है? क्यों नहीं शिक्षकों का शिक्षकों के द्वारा दोहन रोककर छात्रों को शोषण मुक्त किया जा रहा है ?आखिर क्यों विभाग शिक्षकों को गैरशैक्षणिक कार्यों से मुक्त नहीं करती ? ये सवाल बरबस लोगों को सरकार की नियत और निष्ठा पर तिक्ष्ण सवालार्थी है और सरकार को इसका जवाब देने की आवश्यकता है ताकि बिगड़े व्यवस्था का बदहाल सुरत बदल सकें ?