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ससु। मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास से वनवासी कल्याण केंद्र का एक प्रतिनिधिमंडल महामंत्री श्री रिझू कच्छप के नेतृत्व में मिला। इस दौरान श्री कच्छप ने बताया कि झारखंड में जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने के मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश का उल्लंघन किया जा रहा है। वर्तमान में अंचल कार्यालय द्वारा किसी व्यक्ति को उनकी जातिगत रूढ़ियों व प्रथाओं का उनके द्वारा पालन किया जा रहा है या नहीं इस तथ्य को जांचें बिना ही सिर्फ खतियान में उल्लेखित जाति के आधार पर ही प्रमाण पत्र निर्गत किया जा रहा है। जबकि केरल राज्य एवं अन्य बनाम चंद्रमोहनन के बाद दांडिक अपील संख्या 240 वर्ष 1997 व आदेश दिनांक 28.01.2003 में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि किसी व्यक्ति को संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 के परिक्षेत्र के भीतर लाये जाने के पूर्व उसे जनजाति से संबंधित होना चाहिए।
राष्ट्रपति आदेश का लाभ अभिप्राय करने के प्रयोजन के लिए एक व्यक्ति को जनजाति का सदस्य होने की शर्त पूर्ण करना होगा और निरंतर जनजाति का सदस्य बने रहना होगा। यदि एक भिन्न धर्म में धर्मांतरण, के कारण, काफी समय पूर्व वह उसके पूर्वज रूढ़ि अनुष्ठान व अन्य परंपराओं का पालन नहीं कर रहे हैं, जिन्हें उस जनजाति के सदस्यों द्वारा अनुसरण किये जाने की अपेक्षा की जाती है और उत्तराधिकार, विरासत, विवाह इत्यादि की रूढ़िगत विधियों का भी अनुसरण नहीं कर रहे हैं। तो उसे जनजाति का सदस्य स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
श्री कच्छप ने अनुरोध किया कि किसी व्यक्ति का जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने के पूर्व उनके द्वारा जातिगत रूढ़ियों एवं परंपराओं का पालन किया जा रहा है अथवा नहीं, इसकी जांच करने के बाग ही अंचल कार्यालय द्वारा अनुसूचित जनजाति होने का प्रमाण पत्र निर्गत किया जाये। प्रतिनिधिमंडल में मांग पत्र के साथ उच्चतम न्यायालय के आदेश की छायाप्रति भी सौंपी।
मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास ने इस मामले पर गंभीरता से विचार करते हुए कार्रवाई का आश्वासन दिया। इस दौरान मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री सुनील कुमार बर्णवाल, वनवासी कल्याण केंद्र के उपाध्यक्ष डॉ सुखी उरांव व श्री मोहन सिंह मुंडा समेत अन्य लोग उपस्थित थे।