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शिशिर समीर जन्दाहा | वर्षो से खड़ाब पड़ा हैं प्राथमिक विद्यालय ,सरैया “जन्दाहा ” का चापाकल, विभाग को लिखकर दिये हो गये पूरे सात महीने, फिर भी नही हो सकी है कोई समाधान, बच्चे जाते है दूसरे के चापाकल पर पीने के लिए पानी, जहाँ होती उनकी है अच्छी खिंचाई, लाचारी में प्रभारी रसोइया से मँगवा कर पानी पिलाने का करती है काम।यह सुरत जन्दाहा प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय सरैया का है जहाँ
अमूमन मूलभूत आवश्यकताओं सा वंचित है विद्यालय ।
जिले के लगभग विद्यालयों में बच्चो को वंचित रखा जाता है मूलभूत सुविधाओं से।अब सवाल उठता है कि सरकार की मुफ़्त शिक्षा व्यवस्था छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ तो नहीं है ?आखिर क्या वजह है जो पानी जैसी निहायत आवश्यकता को हल्के में लेती है “विभाग ” ? स्थानीय लोगों की माने तो सरकार मुफ्त शिक्षा के नाम गरीब परिवार के बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है ।लोगों के आरोपों में दम इसलिए भी लगाता है, क्योंकि परीक्षा देने के बाद छात्रों को किताबें विभाग द्वारा भेजी जाती है लेकिन अभी तक किताबे उपलब्ध नही कराई गई।
वहीं सभी विद्यालय सरकार के स्वच्छता अभियान को धता बताती दिखाई देती है और इसका मूल कारण संसाधन का अभाव होना बताया जाता है, तो एक बड़ा सवाल है कि क्यों नहीं सरकार सरकारी शिक्षा व्यवस्था को समाप्त कर देती, ताकि लोग स्यंव के भरोसे अपने बच्चे का भविष्य बनाने का प्रयास करते ।
सरकार को शिक्षा विभाग की लापरवाही का संज्ञान लेते हुए बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ बंद करना चाहिए ।